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सब लोग वाजिद खान पर लिख रहे हैं। मेरा भी मन हो गया। बिग स्टार एंटर्टेन्मेंट अवार्ड का पहला सीज़न था। बात 2010 की है। मैं सिलेब्रिटीज़ के स्वागत और सीटिंग का काम सम्भाले हुए था।
इवेंट की शाम को साजिद और वाजिद दोनों जींस और टीशर्ट में आए और नॉमिनेटेड आर्टिस्ट्स के लिए बने दरवाज़े से अंदर आए। साजिद एकदम अतरंगी कपड़ों में था। मेरे साथी ने उन्हें नहीं पहचाना और बग़ैर इन्विटेशन कार्ड के अंदर आने नहीं दे रहा था। थोड़ा हल्ला हुआ और मुझे दरयाफ़्त किया गया।
मैंने देखा कि ये दोनों भाई। मैंने तुरंत वाजिद का हाथ पकड़ा और गले लगाया। कहा अरे भाई आप यहाँ कहाँ, मैं आपको अंदर ढूँढ रहा था। वॉकी पर खबर आयी थी कि आप आ गए हैं। साजिद ग़ुस्सैल हैं और वाजिद को ले कर बहुत प्रोटेक्टिव रहते थे। वो तब भी मेरे साथी से उलझे हुए थे। मैंने उनका भी हाथ पकड़ा और कहा कि अपन अंदर चलते हैं। सब आपका वेट कर रहे हैं।उनकी फ़िल्म दबंग का म्यूज़िक नॉमिनेटेड था।
दोनों भाई भूल गए कि वो बाहर अभी रोके गए थे। मेरे साथ चल कर नॉमिनी एरिया तक गए, उनके साथी दोस्त मिल गए और वो अपनी टेबल पर जम गए। मैं भी वापस लौट ही रहा था कि मैंने एक बार पलट के देखा दोनों की ओर ताकि इनकी नाराज़गी नहीं है ये कन्फ़र्म कर सकूँ। वाजिद ने हाथ दिखाया और साजिद ने हंसते हुए आँख मार कर अपने सही होने का सबूत दे दिया।
बात छोटी थी। लेकिन दोनों भाई मस्त मौला थे। कोई स्टार वाला टैंट्रम नहीं था।
दोनों भाइयों में अगाध प्रेम था। वाजिद को बनना था क्रिकेटर मगर पिताजी उस्ताद शराफ़त अली ख़ान साहब जो की किराना घराना के तबला के उस्ताद थे, उन्होंने वाहिद को गिटार ला कर दिया और उस दिन के बाद से वाजिद के हाथ से वो छूटा नहीं। रात को कपड़ा बांध बजाता था ताकि आवाज़ ना हो बस उँगलियाँ चल जाएँ। पिताजी के साथ देश विदेश में कई कॉन्सर्ट किए। मज़ार और दरगाह पर भी बजाया। साजिद के अंदर रिदम की ग़ज़ब की सेन्स थी तो वाजिद, ट्यून और मेलडी का चैम्पीयन था। कड़क पिताजी जब तक रियाज़ सुन नहीं लेते थे, खाना नहीं खाने देते थे। डिसप्लिन की वजह से दोनों भाई अपने पिताजी को हिट्लर समझते थे मगर आदर इतना था कि आज भी रियाज़ के बग़ैर कोई दिन नहीं जाता था।
एक बार नदीम श्रवण की रिकॉर्डिंग में 150 लोगों का ऑर्कस्ट्रा था जिसमें वाजिद गिटार बजा रहा था। किसी ने ग़लत सुर लगाया और श्रवण ने भला बुरा कहा वाजिद को। तुम्हें अभी बहुत सीखने की ज़रूरत है सुनते ही उसने अपना गिटार उठाया और घर आ गया। बहुत अप्सेट था, तो बड़े भाई साजिद ने घोषणा कर दी कि अब दोनों भाई अपना काम करेंगे। एक अल्बम बनाया मगर रिलीज़ नहीं हुआ। फिर सोहैल खान की फ़िल्म में काम मिला – प्यार किया तो डरना क्या। गाना था तेरी जवानी बड़ी मस्त मस्त है।
सलमान खान ने बहुत साथ निभाया और इन दोनों भाइयों की ज़िंदगी और करियर को बड़े मक़ाम तक ले गए। सलमान ने अभी लॉक डाउन में “भाई भाई” नाम का गाना बनाया जिसका कॉम्पज़िशन साजिद वाजिद ने किया था। ये 25 साल की दोस्ती, दोनों भाइयों ने खूब निभायी। सलमान के घर पर गाने को महफ़िल में दोनों भाई हमेशा मौजूद होते थे।
एक और बात। इनके पिताजी उस्ताद शराफ़त अली खान ने पंचम के साथ बहुत सारी फ़िल्मों में तबला डिपार्टमेंट सम्भाला है। पंचम जैसा रिदम सेन्स बहुत कम लोगों में होता है और ऐसे में उस्ताद जी का तबला सम्भालना यानी उनकी कला पर पकड़ का उदाहरण है। पाकिस्तान में आयोजित संगीत की कई महफ़िलों में उस्ताद जी ने शिरकत की थी।
वाजिद के नानाजी उस्ताद फ़ैयाज़ अहमद खान साहब को पद्मश्री और मामा उस्ताद नियाज़ अहमद खान साहब को तानसेन पुरस्कार से नवाज़ा गया था। इनके दादा उस्ताद अब्दुल लतीफ़ खान क्लासिकल म्यूज़िक के बहुत प्रसिद्ध कलाकार थे। पूरा ख़ानदान शास्त्रीय संगीत को अपनी सेवा दे
रहा था तो इन भाइयों के संगीत की समझ अपने आप में अलग थी।
वाजिद का जाना ग़लत है। असमय है। साजिद अकेले नहीं कर पाएगा कुछ भी क्योंकि उसका सारा प्यार वाजिद के लिए था। वो उसे इंडस्ट्री में भी प्रोटेक्ट कर के रखता था। कभी अकेले नहीं जाने देता था किसी मीटिंग में और साजिद मुँहफट बना रहा क्योंकि वाजिद के दिल में हर किसी के लिए जगह थी। अद्भुत जोड़ी, बहुत ग़लत टूटी है। हिंदुस्तानी वाद्य यंत्रों वाले गाने अब शायद नहीं सुनाई देंगे। वाजिद को नहीं जाना था। अच्छा आदमी होना ज़रूरी है। फ़िल्म संगीत के लिए भारी नुक़सान है। अच्छे लोग नहीं रहने से सब कुछ भारी हो जाता है।
Source: Social media